इसी नतीजे पे पहुँचते हैं सभी आखिर में,
हासिल ए सैर ए जहाँ कुछ नहीं हैरानी है . --------------------------------- जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने ---------------------------------- शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है सोचता रोज़ हूं मैं घर से नहीं निकलूंगा ------------------------------------- सबका अहवाल वही है जो हमारा है आज ये अलग बात है शिकवा किया तन्हा हमने ---शहरयार---- |
---|
इन पंक्तियों के लिखने वाले मशहूर शायर शहरयार साहब थे. इन शेरों को पढ़ कर उनकी छवि एक संवेदनशील शायर के रूप में दिमाग में बन जाती है और इन्हीं पंक्तियों के लिखने वाले के बारे में जब कोई ऐसा बयान आता है जो इस छवि के विपरीत हो..जैसा कि उनकी पत्नी ने उनके मरणोपरांत दिया था. कोई भी यकीन नहीं कर पाता .
यह भी काफी हद तक सच है कि एक स्त्री जो कई साल अपने पति के साथ रही है वह उस के मरने के बाद उसके लिए गलत नहीं बोल सकती.