स्वदेश वापसी /दुबई से दिल्ली-'वन्दे भारत मिशन' Repatriation Flight from UAE to India

'वन्दे भारत मिशन' के तहत  स्वदेश  वापसी   Covid 19 के कारण असामान्य परिस्थितियाँ/दुबई से दिल्ली-Evacuation Flight Air India मई ,...

November 21, 2008

'परिवर्तन आएगा'[श्री प्रदीप शिशौदिया] '


मंजिलें दूर सही ,पाना तो है..
[chitra-google images se sabhaar]
हर तरफ़ आज कल जैसा देश में माहौल है ,लेखों में कविताओं में भारत में वर्तमान स्थिति पर चिंताएँ जताई जा रही हैं.
इसी विषय पर मैं अपने भाई श्री प्रदीप शिशौदिया जी की कविता जो दिल्ली से प्रकाशित
एक पत्रिका में छपी थी और इस कविता पर उन्हें हिन्दी दिवस पर पुरस्कार भी मिला था..
उन से अनुमति ले कर यहाँ अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर रही हूँ.
आशा है, आप भी सकारात्मक सोच की इस कविता को पसंद करेंगे .

'परिवर्तन आएगा '
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वह कहते हैं परिवर्तन आएगा,
हाँ,शायद परिवर्तन आएगा,
टूटी कड़ियों को फिर से जोड़ा जाएगा,
उन्हें उम्मीद है परिवर्तन आयेगा .

अब परिवर्तन आवश्यक है
विचारों की आवश्यकता से,
अनुशासन की आवश्यकता से ,
स्वच्छ मानसिकता की आवश्यकता से ,
हाँ ,इन सब की आवश्यकता से ,एक भौतिक बदलाव आएगा.

हाँ ,जब वह कहते हैं कि बदलाव आयेगा,
तो आशा होती है कि बदलाव आएगा.
सरकारी दफ्तरों में सही आचरण से जो परिवर्तन की लहर उठेगी.
भ्रष्टाचारियों के मरण से जो परिवर्तित हवा चलेगी .
तो ,चौराहों के मुख बदलेंगे ,
कर्मचारी रिश्वत नहीं लेंगे,
शहीदों का फिर होगा सम्मान,
नेता जनहित कार्य करेंगे.

स्पष्टवादिता का युग आएगा ,
फाईलें भारी नहीं होंगी,
दूध में निरमा नहीं होगा,
आदमी तब निकम्मा नहीं होगा,
नियत खोटी नहीं होगी,
संसाधनों की कमी नहीं होगी,
हँसी खुशी की हर और होगी.
लगता है ना..रामराज्य आयेगा?

हाँ, शायद लगता है की परिवर्तन अवश्य आएगा.
घुमड़ घुमड़ कर फिर प्रश्न यही है
मित्र!परिवर्तन कौन लायेगा?
मैं फिर यही कहता हूँ ,
जो लाया है यह स्थिति,बदलाव भी वोही लाएगा.

हाँ ,हमें ही बदलना होगा,
उतरना होगा खरा
उनकी,अपनी,सब की आशा पर,
संस्कार.संस्कृतमय भारतवर्ष को फिर से ,
ज्ञानमय ,विज्ञानमय विकसित करेंगे.

भ्रष्टाचार मिटा कर, सदैव सत्यमेव जयते कहेंगे.
तब सब वास्तव में यही कहेंगे...
जी हाँ,बदल रहा है भारत !
सच ही तो है...आएगा परिवर्तन आएगा!
[--श्री प्रदीप शिशौदिया द्वारा लिखित ]

November 16, 2008

'शब्दों का गणित--शंका और समाधान '


कल मैंने एक कविता पोस्ट की थी'शब्दों का गणित' उस पर ब्रिज मोहन श्रीवास्तव जी की टिप्पणी में किए प्रश्न ने मुझे विवश किया कि उस की व्याख्या टिप्पणी में न दे कर एक पोस्ट में दूँ.
आप ने कहा--'बहुत दिमाग लगाया माफ़ करना में सोच नहीं पारहा हूँ की इस कविता की गहराई क्या है जरा सा भी लिकं मिल जाता तो सोचता''
इस का उत्तर दे रही हूँ-आशा है आप की शंका का समाधान हो जाएगा-

-इन चंद पंक्तियों की व्याख्या इस प्रकार है--

यह उन शब्दों के गणित की बात हो रही है--जिनसे हम रोज़ आपस में संवाद करते हैं -सुनते हैं या कहते हैं -
उन में वे शब्द जो अर्थपूर्ण होते हैं--जिनसे हमें कुछ सीखने को मिलता है--जो हमें आत्म विश्वास देते हैं.
वे शब्द जो हमारा महत्व बताते हैं दूसरे के लिए ही नहीं हमारे अपने लिए भी..
ये वो शब्द हैं जिनसे उर्जा मिलती है--सकारात्मक सोचने में मदद करते हैं..
वे शब्द जो हमें कुछ नयी सीख देते हैं--दिशा देते हैं--
पहले जब बहुत बोल कर- व्याख्यान दे कर 'एक स्थिति में दिमाग सोचना भी बंद कर देता था-
तो लगता था शायद मौन रह कर यह उर्जा वापस मिल सकती है-
लेकिन अब जब मौन की अवधि कुछ ऐसी हो गयी है--जो यह समझा गयी--
कि शब्दों की क्या महत्ता है- इस लिए इन शब्दों का जमा करते हैं--
हर दिन में आप को कितने ऐसे शब्द मिल पाते हैं ?
अगर कभी मिले तो yah उन्हीं चुने हुए शब्दों की
जमा पूंजी है.--इस के अलावा इस बात की दूसरी व्याख्या इस तरह से से भी की जा सकती है -
आधुनिक जीवन की भाग दौड़ में हम संबंधों में आपसी संवाद की भूमिका को भूल गए हैं-
मशीनी जीवन में ऐसा अक्सर होता है की पति पत्नी दोनों में पूरे दिन एक शब्द बात भी न हुई हो--या फिर
एक दूसरे को देखा भी न हो--[जैसा अक्सर शिफ्ट duties वाले दम्पतियों में होता है--]
यहाँ भी देश से दूर --रहने वालों कई परिवारों में देखा है--कि सारा दिन आपस में कोई बात-चीत नहीं होती-
लेकिन फिर भी दिन अपने नियम से गुजरता रहता है
अजीब लगा सुन कर??नहीं कुछ अजीब नहीं है--
मैं ने देखा है --सारे दिन में बात होती है--
उदहारण :-
सुबह--
नाश्ता??

शाम--
चाय?
रात--
खाना क्या बनेगा?
इतनी बात --इस से ज्यादा नहीं--
किसी के पास फुर्सत नहीं है--'संवाद' शब्द बन कर रह गए हैं--उँगलियों पर गिने जा सकतेहैं!
ये तो हाल है जहाँ नौकर नहीं हैं--जहाँ नौकर हैं वहां तो शायद इतनी भी बात न होती हो?
ऐसे में इन चंद शब्दों की कितनी अहमियत होगी ये तो भुक्तभोगी ही बता सकतेहैं-क्यूँ की इन्हीं शब्दों के उत्तर
अगले दिन की वार्तालाप का आधार होते हैं--जीने की कुछ उर्जा देते हैं-
>यह स्थिति है आधुनिकता की देन -- जो बढ़ा जाती है जीवन में शब्दों की अहमियत!

इसीलिये करना पड़ता है शब्दों का गणित और रखना पड़ता है हिसाब!

अब सोचिये आज के दिन के खाते में आप कितने शब्द जमा कर पाए?


November 15, 2008

एक कविता-एक गीत-' शब्दों का गणित'

पहले जब स्कूल में नौकरी करती थी तो ८ periods कक्षा लेने के बाद ऐसा लगता था कि
बस अब बोलने का क्रेडिट सब ख़तम हो गया.कुछ दिन मौन व्रत रखने की इच्छा होती थी..

अब यह आलम है कि -

शब्दों का गणित
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आज ..

दिन के खाते में
जमा हुए सिर्फ़ चार...

कल तो छह हो पाए थे!


कोई ब्याज नहीं मिलता इस पर..


फिर भी चाहती हूँ..


ये जमापूंजी कुछ और बढे!

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पुरानी फ़िल्म का एक गीत प्रस्तुत है..[मेरी आवाज़ में ]
'मुझको इस रात की तन्हाई में आवाज़ न दो '
[यह मूल गीत नहीं है]आशा है पसंद आएगा.

November 9, 2008

एक कविता-एक गीत -'डर '

कविताई की सीमाओं में न बंधते हुए..कुछ शब्दों को बाँधने की कोशिश रहती है..कई बार किन्हीं पंक्तियों को कोई रूप मिल जाता है--कई बार यूँ ही मुठ्ठी में बंधी रह जाती हैं..देखें यूँ ही चलते-चलते क्या लिखा है....

रात के आने से,

उसकी तन्हाईयों से डर लगता है..

भीगती हैं पलकें,

ख़ुद के बह जाने का डर लगता है..

जिसको देखा भी नहीं,दिल ने उसको चाहा है...

क्यूँ क़दमों के बहक जाने का डर लगता है?

वो मिले या ना मिले ,मगर--

...ख़ुद के खो जाने का डर लगता है!

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समय मिले तो एक गीत भी सुनियेगा -
-ये मूल गीत नहीं है न ही तुलना करियेगा-क्यूँ कि बस यूँ ही गुनगुना रही हूँ -आप को सुना रही हूँ...:)
'तेरा -मेरा प्यार अमर फिर क्यूँ ....'मुझे बहुत पसंद है --आशा है आप को भी पसन्द आएगा.

November 5, 2008

कहीं दूर चलें..



कहीं दूर चलें
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सोचती हूँ आज ,कहीं दूर चलें,

गुनगुनाती शाम के धुंधलके में,
चाँद की रोशनी के मद्धम होने तक ,
तुम करो बातें और मैं सुनती जाऊँ .

फूलों की खुशबू और झरने के मधुर स्वर,
गिरते पानी की बूंदों को हवा -
-मेरी अलकों पर मोती सा सजाती ,
माथे पर गिरी बूंदों को तुम्हारी उँगलियों की छुअन-
सोयी आरजूएं जगा जाती लेकिन..
अधरों पर आ कर हर बात ठहर जाती.

रात की तन्हाईयों में ,सुबह ओस के गिरने तक...
दिल की हर उलझन सुलझ जाए,
रुसवा न हो चाहत ये ख्याल रहे...
रूह में उनकी मेरी रूह
यूँ समा जाए...

सोचती हूँ आज कहीं दूर चलें..

[--Alpana Verma]